ई वेस्ट से पर्यावरण और स्वास्थ्य को हो रहा खतरा
हर वर्ष बढ़ रहे ई कचरे से जहरीली गैसें निकलती हैं जिससे पर्यावरण और लोगों के स्वास्थ्य को खतरा होता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में सामने आया कि वर्ष 2019-20 में लाखों टन ई कचरा निकला। इसमें बैटरियों से निकलने वाला खराब पदार्थ भी शामिल रहा। इस कचरे में सीसा, लिथियम, पारा और कैडमियम जैसे विभिन्न खतरनाक रसायन होते हैं। इनसे लंबे समय में स्वास्थ्य को नुकसान होता है।
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घास के फाइबर से होगी खाने की पैकिंग, प्लास्टिक से मिलेगा छुटकारा
‘सिनप्रोपैक’ नामक एक नई परियोजना के तहत खाने की पैकेजिंग के लिए प्लास्टिक की जगह अब घास के रेशे का इस्तेमाल किया जायेगा। यह 100 फीसदी बायोडिग्रेडेबल है। दुनिया भर में हर साल करीब 50,000 करोड़ प्लास्टिक की थैलियों का उपयोग किया जाता है, वहीं हर मिनट 10 लाख से अधिक थैलियों का उपयोग किया जाता है। इसका उद्देश्य पैकेजिंग के लिए उपयोग किए जाने वाले डिस्पोजेबल प्लास्टिक का एक स्थायी विकल्प तैयार करना है।
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विश्व की 90% सिंगल यूज प्लास्टिक कचरा सिर्फ 100 कंपनियां कर रहीं पैदा
लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, स्टॉकहोम एनवायरनमेंट इंस्टीट्यूट और मिंडेरू फाउंडेशन की जॉइंट रिसर्च में सामने आया कि दुनिया भर के सिंगल यूज़ प्लास्टिक कचरे का 90% विश्व की सिर्फ 100 कंपनियां पैदा कर रही हैं। इसमें से सिर्फ 20 कंपनियां 55% कचरा पैदा कर रही है और इन कंपनियों को 60% वित्तीय मदद 20 बैंकों या संस्थानों से मिल रही है। इसमें अमेरिका की कंपनी डाउ केमिकल्स और चीन की पेट्रो कंपनी सिनोपेक के नाम भी शामिल है।
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