मछली के बेकार अंगों से वैज्ञानिकों ने तैयार किया बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक
वैज्ञानिकों द्वारा एक बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक बनाने में सफलता हासिल की गयी है जो मछली के बेकार अंगों जैसे सिर, हड्डियों और त्वचा से बना है। इस प्लास्टिक को एंजाइम लिपेस की मदद से एक बार उपयोग होने के बाद आसानी से बायोडिग्रेड किया जा सकता है। शोधकर्ताओं द्वारा जल्द ही इसके भौतिक गुणों पर भी अध्ययन किया जाएगा, जिससे इसको वास्तविक दुनिया में लाकर पैकेजिंग और कपड़ों के निर्माण में उपयोग किया जा सके।
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हर साल 39 से 52 हज़ार माइक्रोप्लास्टिक के कणों को निगल रहे हैं मनुष्य: अध्ययन
रॉयल मेलबोर्न इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी लैब-आधारित अध्ययन के अनुसार 47% कछुए और चिड़ियों के मल में व 12.5% मछलियों में प्लास्टिक के सूक्ष्म और दूषित केमिल के कण पाए गए हैं। एक दूसरे अध्ययन के मुताबिक हर साल 39 से 52 हज़ार माइक्रोप्लास्टिक के कणों को मनुष्य द्वारा भी निगला जा रहा है। जिससे दुनियाभर के पारिस्थितिक तंत्र प्रभावित हो रहा है। असल में माइक्रोप्लास्टिक 0.2 इंच से छोटे प्लास्टिक के कण है, जो समुद्र में सूरज, हवा या अन्य कारणों से… read-more
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समुद्री कछुए महासागरों में प्रवेश करके प्लास्टिक के कचरे को बना रहे भोजन - शोध
बोलोग्ना विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के एक समूह ने इटली के रिकसिओन में फोंडाजिओन सेतासिया के अस्पताल में भर्ती 45 कछुओं के मल का विश्लेषण किया है। विश्लेषण के आधार पर उन्होंने कछुओं के मल में प्लास्टिक का कचरा पाया है। इस अध्ययन के मुताबिक प्लास्टिक का कचरा कछुओं की आंतों के माइक्रोबायोटा में होने वाले बदलावों के लिए जिम्मेदार हैं। इससे जहरीले रसायन भी अवशोषित हो सकते है जो उपकला (एपिथेलियल) के नुकसान का कारण बन सकता है।
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